सोलुब्ल फेर्तिलाईजर /लिकुइद फेर्तिलाईजर/ड्रीप फेर्तिलाईजर - कई नामो से जाने जाना वाला यह वोह चमत्कारी पदार्थ है, जिसने भारतीय अंगूर को एउरोपे में बिकने योग्य बनाया, अनार और केले को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जगह दी और भारत को फल उत्पादक देश के रूप में प्रतिष्ठित किया. इतना ही नहीं, इसने गेहू, सोयाबीन, कपास, केला, मिर्ची और अन्य सभी प्रकार के फसलों को रोग मुक्त किया, कीटनाशक की जरूरत को कम किया, उत्पादन को बहुत ज्यादा बढ़ाया और इसीलिए कृषि जे जुड़े भारत की हर छोटी बड़ी कंपनी इस खाद को आयात कर रही है और किसानो तक पहुचा रही है.....पर बिडम्बना यह है की इस पदार्थ का उत्पादन भारत में बहोत कम किया जाता है और देश पूरी तरह से चीन से हो रहे आयात पर निर्भर है....
आप सोच रहे होंगे की दूसरे देश जैसे सौदी/दुबई/चीन इस मामले में हमसे ज्यादा उन्नत है, भारत के पास यह कार्यकुशलता नहीं है, या फिर इसका कच्चामाल भारत में नहीं मिलते अदि अदि..या फिर दूसरे देश हमसे ज्यादा बूधिमान और ईमानदार है और हमे सद्येब अच्छी गुणवत्ता देते है.....
आप सोच रहे होंगे की दूसरे देश जैसे सौदी/दुबई/चीन इस मामले में हमसे ज्यादा उन्नत है, भारत के पास यह कार्यकुशलता नहीं है, या फिर इसका कच्चामाल भारत में नहीं मिलते अदि अदि..या फिर दूसरे देश हमसे ज्यादा बूधिमान और ईमानदार है और हमे सद्येब अच्छी गुणवत्ता देते है.....
भारत में कम उत्पादन के कारण आपके सोच से
बिलकुल हटकर है....असली कारण भारत सरकार की चली आ रही निम्नलिखित नीतिया और अफसरवाद है –
विदेशी उत्पादक
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भारतीय उत्पादक
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लाइसेंस
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भारतीय कानून के अनुसार एक विदेशी उत्पादक को भारत में ब्यापार करने के लिए कोई लाइसेंस की जरूरत नहीं होती और खराब गुणवत्ता के लिए उसकी कोई जिम्मेदारी भी
नहीं. सारी जिम्मेदारी इम्पोर्टर यानि मार्केटिंग कंपनी की होती है. उसे हर
राज्य में अलग अलग लाइसेंस लेना होता है.*
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एक भारतीय उत्पादक को फैक्ट्री शुरुवात
से पहले ही करीब 10 लाइसेंस लेने पड़ते है और फिर आता
है खाद नियंत्रक बिभाग. इनकी प्रक्रिया निहायत ही लम्बा और खर्चीला है. इसके आड
में चलता है इंस्पेक्टर राज का अत्याचार.
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मार्केटिंग
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किसीभी भारतीय कंपनी को (सोर्स
सर्टिफिकेट) एक साधारण लैटर देकर दायित्व खतम
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हर राज्य में अलग अलग लाइसेंस उसके बाद
मार्केटिंग कंपनी को फिरसे उन्ही राज्यों में अलग लाइसेंस.
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सब्सिडी
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खाद नियंत्रक बिभाग के पास यह पता
लगाने का कोई उपाय नहीं है की विदेशो में सब्सिडी के कच्चामाल का इस्तेमाल कर
खाद बनाकर निर्यात होता है की नहीं. वैसे अंतर्जतिक ब्यापार में किसीभी देश के
उत्पादन को नुकसान पोहुचाने के लिए ऐसे खेल हमेशा खेले जाते है.
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एक भारतीय उत्पादक कोई भी सब्सिडी का
कच्चामाल इस्तेमाल नहीं कर सकता. और बगैर सब्सिडी का कच्चामाल भी उसे सरकारी
एजेंसिया बहुत उचे दाम पर और बरे
मुश्किल से देती है और वह भी कई
एजेंट के जरिये. सब्सिडी ना होने के बाबजूद भी इनपर खाद नियत्रण के सारे नियम लागु किये जाते है. जैसे की फैक्ट्री इन्स्पेक्सन, नमूना संग्रह अदि. आप समझ सकते है भ्रष्टाचार से पीड़ित इस देश में इनका क्या
मतलब होता है.
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एक्सपोर्ट
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हमारे ज्यादातर परोशी देश हमे निर्यात
कर सकते है और हम आयात
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लेकिन हम निर्यात नहीं कर सकत. कुछ
उपाय है पर वोह इतने पेचीदे है की साधारण लोग इससे दूर ही रहते है.
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लोन
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विदेशो में सभी ब्यापार के लिए बरा ही
आसान है
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खास करके सोलुब्ल उत्पादक को ज्यादातर बैंक
इसलिए लोन नहीं देती किउकी उनको यह उत्पादन और ब्याब्साय समझ में ही नहीं आता. कभीभी इस जरूरी खाद उत्पादन को "Priority Sector Lending" लाने के बारे में सोचा ही नहीं गया और इसलिए बैंको का उपेक्षा स्वभाबिक है.
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* एक उदाहरण - महाराष्ट्र के किसान अति निम्न मान का 0-0-50 पाने के बाद और इसपर तीब्र बिरोध के बाद भी, “ताइवान” की एक कंपनी आज
भी अपना 0-0-50 भारत को निर्यात कर रही है....इनपर भारत का कोई भी नियम
लागु नहीं होता, और इसलिए कोई रोक नहीं...
अगर हमारी सरकार, बिदेशी कंपनियों को दी जनि वाली सुबिधाओ के बराबर जितनी सुबिधा देशी कंपनियों को दे दे और सबके लिए लिए नियम एक समान कर दे, तो विदेशियों से भी अच्छी गुणवत्ता के खाद हम देश में ही बना सकते है, इससे विदेशी मुद्रा का बोझ कम होगा, रोजगार बढ़ेगा और
हमे, अपने देश से निर्यात कर देश के लिए बिदेशी मुद्रा कमाने का मौका भी मिलेगा.